Hostages 2 Review: सस्पेंस से भरी है होस्टेजेस सीजन 2(Hostages Season 2) की कहानी



Web Series Review : होस्टेजेस 2
कलाकार: डीनो मोरिया, शिबानी दांडेकर, दलीप ताहिल, कंवलजीत सिंह, सचिन खुराना और रोनित रॉय आदि।
निर्देशक: सचिन कृष्णन
ओटीटी: डिजनी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग: **

स्टार नेटवर्क के लीड चैनल स्टार प्लस को हिंदी पट्टी के घर घर पहुंचाने वाले और हिंदी धारावाहिकों के नियमित दर्शकों को ‘कौन बनेगा करोड़पति’, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ और ‘कहानी घर घर की’ का स्वाद लगाने वाले शोमेकर समीर नायर ओटीटी के खेल में पिछड़ चुके हैं। उनका मुकाबला इस खेल में ‘पाताल लोक’, ‘बुलबुल’, ‘सैक्रेड गेम्स’, ‘घूल’ और  ‘ब्रीद’ जैसे थ्रिलर्स के अलावा ‘ये मेरी फैमिली’ और ‘पंचायत’ जैसी हल्की फुल्की कॉमेडी बनाने वालों से भी है। लेकिन, अप्लॉस एंटरटेनमेंट फिलहाल कुछ ओरीजनल बना नहीं पा रही है और विदेशी धारावाहिकों के हिंदी रीमेक में हिंदी पट्टी के दर्शकों का मन नहीं लग रहा


 ‘होस्टेजेस’ के सीजन वन का मिला जुला रेस्पॉन्स मिलने के बाद समीर नायर ने सोचा था कि ‘बुजुर्ग’ सुधीर मिश्रा की बजाय इस बार उनके डीओपी रहे सचिन कृष्णन पर दांव लगाकर वह नैया पार कर ले जाएंगे, ऐसा हो भी सकता था अगर सीरीज का दूसरा सीजन 12 की बजाय बस आठ एपीसोड का होता। सचिन ने इस सीजन में कमाल का कैमरा वर्क एक्शन और टेंशन वाले सीन्स में दिखाया है। उनका सीरीज के कथा विस्तार पर नियंत्रण न होने से वह कागज पर उन्हें लिखा मिला सब शूट करते रहे। वीडियो एडीटर जो कुछ शूट होकर मिला उसे कागज पर मिले शो फ्लो के हिसाब से एडिट करते रहे। बस, किसी ने ये नहीं देखा कि कहानी लहरा गई है



‘होस्टेजेस 2’ की कहानी का सिरा शुरू में सही रहता है। मुख्यमंत्री के अपहरण का राज खुलने के बाद पृथ्वी सिंह पैतरा बदलना चाहता है, लेकिन उसका पैंतरा उसका ही पासा पलट देता है। जिस इमारत में मुख्य रूप से ये कहानी चल रही है, सीरीज की असली कमजोर कड़ी यही है। एक खास तरह का कलर पैलेट डालकर थ्रिलर सीरीज बनाने का नया चस्का हिंदी फिल्ममेकर्स को जो लगा है, वह इस सीरीज में भी दिख रहा है। ऐसे निर्देशकों को नीरज पांडे का ‘स्पेशल ऑप्स’ फिर से देखना चाहिए। प्राकृतिक रंगों का रहस्य और रोमांच ही कुछ और होता है। निर्देशक अगर खुद भी डीओपी ही रहा हो तो फिर तो उसे इससे वैसे भी बचना चाहिए।


निसर्ग मेहता, सूरजा गियानानी आदि की लिखी सीजन 2 की पटकथा ‘होस्टेजेस 2’ की दूसरी कमजोर कड़ी है। 12 कड़ियों तक इस सीजन में रायता इतना ज्यादा फैल चुका होता है कि दर्शक को कॉपी पेन लेकर बैठना पड़ता ये समझने के लिए कौन सा किरदार क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है। एक ट्रैक में हत्या की साजिश चल रही है, दूसरी जगह कोई अरबों खरबों की डील कर रहा है, खुफिया विभाग की अंदरूनी सियासत जो चल रही है वह चल ही रही है। कुछ कुछ ऐसा हो गया है कि जाना था जापान, पहुंच गए चीन, समझ गए ना। ये ठीक है कि कहानी को आगे बढ़ाने के लिए क्षेपकों की जरूरत सिनेमा में होती है लेकिन जब ये मूल कहानी की दिलचस्पी ही खत्म कर दें तो फिर बात खतरे की है। 


बेतरतीब निर्देशन और बिखरी पटकथा के बाद ‘होस्टेजेस 2’ की तीसरी कमजोर कड़ी है इसके कलाकार। आयशा का किरदार कर रहीं दिव्या दत्ता को छोड़ इस बार दूसरा कोई खास प्रभावित करता नहीं है। रोनित रॉय कैमरे के सामने बार बार एक ही भाव दिखाते हैं और बोर करते हैं। कंवलजीत सिंह और सचिन खुराना जैसों की कास्टिंग ही गलत है। मोहन कपूर ओवरएक्टिंग का शिकार हैं, दलीप ताहिल अपना आकर्षण खो चुके हैं। शिबानी दांडेकर और डीनो मोरिया से जो उम्मीदें दर्शकों को रहीं, वो इन दोनों ने जरूर पूरी कर दीं। श्वेता बासु प्रसाद का इस तरह का किरदार क्यों गढ़ा गया और उन्होंने ये भाषा बोलने की बात क्यों मानी, 


फिल्म की चौथी कमजोर कड़ी सीरीज का संपादन है। ये पूरी कहानी आसानी से 8 एपीसोड में बहुत ही चुस्त तरीके से खत्म की जा सकती थी। और, पांचवीं और आखिरी कमजोर कड़ी है इसका पूरा विचार हू ब हू इजरायली शो जैसा रख देना। अगर इसी कहानी को बेहतर तरीके से हिंदी पट्टी के दर्शकों की संवेदनाओं के साथ बनाया गया होता तो ये सीरीज ‘जैक रयान’ या फिर ‘ब्लैकलिस्ट’ जैसी सीरीज की तरह एक कसी हुई सीरीज हो सकती थी। ओटीटी पर फिलहाल इस शुक्रवार लोगों को ‘बैड ब्वॉयज’ के अगले एसीपोड का इंतजार है। इतवार को आप एक बेहतरीन फिल्म ‘टिकी टिका’ भी जी5 पर देख सकते हैं।